Monday, July 28, 2008

दो पंक्तियाँ

ना पूछो मुझसे की ये मुझको हुआ क्या है
जानना है मुझको की बता ए वक्त तुझमे छुपा क्या है?
क्यों यूँ तिल तिल कर के खोलता है परत दर परत,
क्यों यूँ हमेशा आस देता है तू पल पल, की होगी सुबह जल्दी से
बस इस बदलने की आस में यूँ बिताता हूँ में अब हर एक पल
शायद आज से अच्छा ही होगा जो आने वाला है कल!
समय के इस फेर में मैं भूल सा गया हूँ की आज की भी कितनी महत्ता है
जरा सी देख की मुश्किल यह दिल कुछ ऐसे बहकता है
संभाले नही संभलता, आंसू आ ही जाते हैं बस आँखें साथ नहीं देतीं
कब का छूट गया होता साथ इस जिंदगी का जो उम्मीद मेरा दामन थाम नही लेती!
अब जब थामा है हाथ तो बीच मझधार में मुझे छोड़ ना देना
मेरा जो कल अच्छा होने का सपना है वो तोड़ ना देना

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